नई दिल्ली, 25 सितंबर 2025 – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस ऐतिहासिक अवसर पर संघ ने बड़ा कदम उठाते हुए अपने 40 से अधिक आनुषांगिक संगठनों के पुनर्गठन की घोषणा की है। बदलते सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए इन संगठनों की संरचना, स्वरूप और दायित्वों में व्यापक बदलाव किए जाएंगे।
डिजिटल युग में नई दिशा
संघ ने स्वीकार किया है कि 21वीं सदी की चुनौतियाँ और अवसर पहले से अलग हैं। डिजिटल युग में युवाओं की बढ़ती भागीदारी, सोशल मीडिया का प्रभाव, और वैश्विक स्तर पर बदलते आर्थिक समीकरणों को देखते हुए आरएसएस अपने संगठनों को अधिक प्रभावी और प्रासंगिक बनाना चाहता है।
पुनर्गठन की प्रक्रिया
यह प्रक्रिया सितंबर 2022 में शुरू हुई थी और इसे पूरा होने में तीन वर्ष का समय तय किया गया था।
अब शताब्दी वर्ष में प्रवेश करते हुए यह प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
विभिन्न क्षेत्रों जैसे शिक्षा, श्रम, किसान, महिला, विद्यार्थी, उद्योग और सेवा से जुड़े संगठनों की भूमिका को पुनर्परिभाषित किया जा रहा है।
उद्देश्य और लक्ष्य
- समाज में व्यापक पहुँच – ग्रामीण से शहरी और डिजिटल से वैश्विक स्तर तक संगठन की पकड़ मजबूत करना।
- युवाओं को जोड़ना – नई पीढ़ी को तकनीक, शिक्षा और उद्यमिता के माध्यम से राष्ट्र निर्माण से जोड़ना।
- आर्थिक और सामाजिक योगदान – समाज के पिछड़े तबकों, किसानों और श्रमिकों को नई दिशा देना।
- राष्ट्रीय एकता पर बल – बदलते परिवेश में भी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय मूल्यों की रक्षा।
ऐतिहासिक महत्व
आरएसएस की स्थापना 1925 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। तब से लेकर अब तक संगठन ने देश की सामाजिक और सांस्कृतिक धारा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। शताब्दी वर्ष पर यह पुनर्गठन न केवल संगठन की नई दिशा का प्रतीक है, बल्कि आने वाले दशकों के लिए इसके विज़न को भी स्पष्ट करता है।